Noida / भारतीय टॉक न्यूज़ : शहर को प्रदूषण मुक्त बनाने और निवासियों को परिवहन का एक सुगम विकल्प देने के उद्देश्य से पिछले साल शुरू की गई नोएडा अथॉरिटी की महत्वाकांक्षी ई-साइकिल परियोजना भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कारण लॉन्च होने के कुछ ही समय बाद ‘पंक्चर’ हो गई है। इस मामले में नोएडा अथॉरिटी के सीईओ लोकेश एम. द्वारा गठित एक जांच समिति ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं, जिसमें पता चला है कि कुछ अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर एजेंसी को अनुचित लाभ पहुँचाया। अब इस घोटाले में शामिल कई अधिकारी जांच समिति के रडार पर आ गए हैं।
क्या है पूरा मामला?
नोएडा प्राधिकरण ने 2023 में शहर के विभिन्न स्थानों पर 62 डॉकिंग स्टेशन बनाकर ई-साइकिल प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसका मुख्य लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण और लास्ट-माइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाना था। लेकिन यह परियोजना सफल होने के बजाय विवादों में घिर गई। शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि प्राधिकरण के ट्रैफिक सेल के कुछ अधिकारियों ने परियोजना को विफल करने में अहम भूमिका निभाई।
जांच समिति के अनुसार, इन अधिकारियों ने निजी एजेंसी को फायदा पहुँचाने के लिए परियोजना के मूल ‘रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल’ (RFP) में ही बदलाव कर दिए। मूल अनुबंध के बाद एक और गुप्त समझौता किया गया, जिसके तहत एजेंसी को डॉक स्टेशनों पर दोगुने आकार के विज्ञापन होर्डिंग लगाने की अवैध अनुमति दे दी गई।
सीईओ के आदेश पर एक्शन, जांच समिति ने मांगा जवाब
प्रोजेक्ट में हो रही गड़बड़ियों का संज्ञान लेते हुए नोएडा अथॉरिटी के सीईओ लोकेश एम. ने 10 दिन पहले एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। समिति ने ट्रैफिक सेल के अधिकारियों से कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जवाब तलब किया है। समिति ने विशेष रूप से यह सवाल उठाया है कि मूल RFP में बदलाव क्यों और किसके कहने पर किए गए और दूसरा अनुबंध बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी।
सीईओ लोकेश एम. ने स्पष्ट किया है कि यह एक गंभीर मामला है और इस गड़बड़ी के लिए जो भी अधिकारी या कर्मचारी जिम्मेदार पाया जाएगा, उसके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
अवैध होर्डिंग्स पर चलने लगा हथौड़ा
जांच शुरू होते ही नोएडा ट्रैफिक सेल ने डॉक स्टेशनों पर लगे अवैध यूनिपोल और होर्डिंग्स को हटाने की कार्रवाई तेज कर दी है। ट्रैफिक सेल के जीएम एस.पी. सिंह ने बताया कि अब तक सेक्टर-128 और सेक्टर-62 स्थित डॉक स्टेशनों के बाहर लगे अवैध विज्ञापनों को हटाया जा चुका है और यह अभियान आगे भी जारी रहेगा।
इस पूरे प्रकरण ने नोएडा प्राधिकरण की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक जन-कल्याणकारी परियोजना, जो शहर की आबोहवा को सुधार सकती थी, अधिकारियों और एजेंसी के गठजोड़ की भेंट चढ़ गई। अब देखना यह होगा कि जांच के बाद दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है।