उत्तर प्रदेश : आंदोलन की ओर अग्रसर , पंचायत सहायक 2 , पूरी ख़बर पढ़े ।

Chirag Rathi
Chirag Rathi - Content writer
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उत्तर प्रदेश : आंदोलन की ओर अग्रसर , पंचायत सहायक 2 , पूरी ख़बर पढ़े ।

पंचायत सहायकों की कहानी

Uttar Pradesh:  उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ बनाने हेतु मंचों पर अनेक बार भाषण दिए गए हैं, जिनमें 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, उचित रोजगार और अन्य आकर्षक वादे शामिल हैं। परंतु, क्या आप जानते हैं कि ग्राम पंचायत इकाई, जो किसी भी राज्य की नींव होती है, उसमें कार्यरत ग्राम पंचायत सहायक को उत्तर प्रदेश सरकार से कितना मानदेय प्राप्त होता है? केवल 6000 रुपये प्रति माह। क्या आपने कभी सोचा है कि मात्र 200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वह अपने परिवार का खर्च कैसे चलाएगा? ग्राम पंचायत सहायक अकुशल मजदूर नहीं होते, बल्कि गांव के प्रतिभावान और मेधावी युवा होते हैं, फिर भी उन्हें एक मनरेगा मजदूर से भी कम मानदेय दिया जाता है। क्या यह न्यायसंगत है? क्या इसी तरह की व्यवस्था के आधार पर योगी जी 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का वादा करते हैं? और क्या इस प्रकार के कार्यों से ‘उत्तम प्रदेश’ की परिकल्पना साकार हो सकती है? इसका उत्तर है, नहीं। ध्यान देने योग्य है कि यह पंचायत सहायकों की भर्ती योगी जी के रोजगार सृजन की दिशा में एक प्रमुख कदम मानी जाती है, क्योंकि इसी के तहत 58189 नियुक्तियां की गई थीं, जो उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

और यही उपलब्धि उन लोगों के लिए निराशा का कारण बन गई है, जिन्होंने इस भर्ती को अपने उज्ज्वल भविष्य की आशा मानकर आवेदन किया था।

 सरकार की उपलब्धि : मेधवियों के गले की हड्डी

आइए, इसके पीछे की कहानी को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं कि ऐसा क्यों कहा गया?

  • इस नौकरी के अंतर्गत एक पंचायत सहायक को करीब 242 काम करने होते है मगर अगर जमीनी हकीकत जाने तो ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव इससे अधिक उनसे काम बिना किसी अतिरिक्त मानदेय के करवाते है जिसमे कृषि विभाग , ओर चिकित्सा विभाग मुख्य है?
  • इस नौकरी के नोटिस में कही पर भी कोई समय सीमा निर्धारित नही की गई थी , मगर नियुक्तियों के बाद एक नोटिस जारी करके सभी के लिए यह आदेश जारी किया गया की आपको सुबह 10 बजे से 5 बजे तक पंचायत ऑफिस में बैठना है जिसकी वजह से पंचायत सहायक कोई अन्य काम भी नहीं कर सकता जिससे अपनी आजीविका को सही ढंग से चला सके।
  • पंचायत सहायकों को एक महीने में कई बार ब्लॉक में तथा कम से कम एक बार जिला कार्यालय में बुलाया जाता है जिसका आने जाने का खर्च भी पंचायत सहायकों को खुद की जेबह से भरना पड़ता है
  • इस भर्ती का जब नोटिस जारी किया गया था तो उसमे लिखा गया था की यह नौकरी सिर्फ 1 साल तक वैध है , इसके बाद नई नियुक्तीय की जाएगी, मगर क्या ऐसा हुआ ? तो जवाब है नही क्योंकि लगभग 3 वर्षों तक वही भर्ती जारी है। बिना मानदेय में वृद्धि किए ।
  • इस नौकरी में प्रसाशन की तरफ से तमाम वो हिदायते है जो एक सरकारी नौकरी के लिए होती है जैसे इसके दौरान आप अपनी पढ़ाई जारी नही रख सकते , कोई दूसरी जॉब नहीं कर सकते । सब छीजे सरकारी नौकरी वाली होने के बावजूद मानदेय एक अकुशल मानरेगा मजदूर से भी काम है आखिर ऐसा क्यों ?
  •  वो 6000 रुपये की भारी रकम भी कोई आसानी से प्राप्त नहीं होती बल्कि उसके लिए भी काफी कडा संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि सरकार इन रुपयों को ग्राम पंचायत के खाते में डालती है जिसको निकालने का अधिकार पंचायत सचिव और प्रधान को होता है अंत उन रुपयों को पाने के लिए भी प्रधान और सचिव की मिन्नते करनी पड़ती है तब जाकर वह रुपये मिलते है।
  • इस नौकरी से न तो उनका भविष्य सुरक्षित है। और न आगे की कोई उम्मीद है , क्योंकि सरकार तो शायद ध्यान देना ही नहीं चाहती

उपरोक्त बिन्दुओ से साफ होगीय होगा की यह भर्ती कैसे पंचायत सहायकों के गले की हड्डी बन गई है

आंदोलन की और अग्रसर : पंचायत सहायकों का संघर्ष

किसी भी लोकतांत्रिक देश में अपने विरोध को दर्ज कराने का सबसे सरल और किफायती तरीका एक शांतिपूर्ण आंदोलन होता है। जिसकी रह पर अभ पंचायत सहायक बढ़ रहे है क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं रहा । जिसकी शुरुआत वो आने वाली 14 जुलाई से एक्स पर एक ट्रेंड के माध्यम से करने जा रहे है । और साथ ही साथ आने वाले वक्त में अपने क्षेत्र के विधायक और सांसद के घेराव करने की बात उनके द्वारा काही जा रही है । उनका कहना है की सरकार को हमारी आवाज अपने बहरे कानों से सुन्नी चाहिए और अपनी अंधी आँखों से हमारी दुर्दशा देखनी चाहिए । क्योंकि हम कोई अकुशल मजदूर नहीं बल्कि गाव के मेधावी छात्र है इसलिए हमारी मांगे पूरी की जानी चाहिए वरना फिर सरकार आंदोलन के लिए तैयार रहे।

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