Greater Noida/ भारतीय टॉक न्यूज़: कर्मवीर नागर प्रमुख का मानना है कि राजनीति एक शतरंज के खेल की तरह है, जहाँ हर नेता ऊपर से नीचे तक अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में भी नेताओं ने अपनी पसंद के लोगों को पद दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया। नागर ने यह भी स्वीकार किया कि आज के समय में राजनीति में जातिवाद का बोलबाला है और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों द्वारा जातीय संतुलन बनाए रखने के प्रयास अब बीते दिनों की बात हो गई है, क्योंकि अब वोट बैंक मुख्य रूप से पार्टी आधारित हो गया है।
पार्टी आधारित वोट बैंक से हाशिये पर गुर्जर समाज:
कर्मवीर नागर प्रमुख का कहना है कि गौतम बुद्ध नगर में पिछले कई चुनावों के नतीजों से यह साबित हो चुका है कि यहाँ वोट बैंक जाति आधारित न होकर पार्टी आधारित हो गया है। इसी कारण गुर्जर बहुल जिला होने के बावजूद गुर्जर समाज राजनीतिक रूप से हाशिये पर पहुँच गया है। उन्होंने कहा कि इसके लिए किसी को दोष देना उचित नहीं है, क्योंकि राजनीति में हर कोई अपने हितों को साधने का प्रयास करता है। आमतौर पर पार्टियाँ जातिगत संख्या के आधार पर टिकटें वितरित करती हैं, लेकिन गौतम बुद्ध नगर में “जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” का नारा अब फीका पड़ता दिखाई दे रहा है।
राजनीतिक हाशिये की शुरुआत और पंचायत पुनर्गठन:
कर्मवीर नागर प्रमुख के अनुसार, गुर्जर समाज को राजनीतिक हाशिये पर धकेलने की शुरुआत गौतम बुद्ध नगर की 288 ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन को बंद करने से हुई। उन्होंने इसका श्रेय तत्कालीन भाजपा सरकार में मंत्री रहे बाबू हुकम सिंह को दिया। गांवों को औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद पंचायत पुनर्गठन बंद होने से गुर्जर समाज के बहुत से लोग प्रधान, बीडीसी सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे पदों से वंचित हो गए।
जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भी निराशा:
बची-खुची कसर जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में पूरी हो गई, जब गुर्जर समाज के जिला पंचायत सदस्यों की अधिक संख्या होने के बावजूद सत्ताधारी पार्टी ने उस समाज के प्रत्याशी को चुनाव में उतारा जिसकी केवल एक वोट थी और उसे ताजपोशी करा दी गई।
विधानसभा चुनावों में वफादारी का खामियाजा:
इसके बाद, नोएडा और जेवर विधानसभा सीटों पर गुर्जर समाज ने पार्टी के प्रति वफादारी दिखाते हुए गैर-गुर्जर प्रत्याशियों को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नागर का मानना है कि गुर्जर समाज की इसी वफादारी की भावना ने उन्हें राजनीतिक रूप से हाशिये पर पहुँचा दिया है।
दादरी विधानसभा सीट पर टिकी निगाहें:
गौतम बुद्ध नगर में गुर्जर समाज की राजनीति को शून्य पर पहुँचाने के इस अभियान में अब केवल दादरी विधानसभा सीट बची है, लेकिन नागर को लगता है कि वह दिन भी दूर नहीं जब यहाँ भी गुर्जर समाज का राजनीतिक प्रतिनिधित्व समाप्त हो जाएगा।
संसदीय सीट पर संतोष और दबी हुई नाराजगी:
हालाँकि, नागर ने संसदीय सीट की बात करते हुए कहा कि डॉ. महेश शर्मा पहले से ही भाजपा से चुनाव लड़ते रहे हैं और उन्हें जिताने में गुर्जर समाज ने हमेशा बढ़-चढ़कर योगदान दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि जिला अध्यक्ष पद से वंचित किए जाने के बावजूद गुर्जर समाज के लोग अपनी नाराजगी को अंदर ही दबाकर ऊपर से बनावटी मुस्कान दिखा रहे हैं।
सांसद का प्रभाव और आत्ममंथन की आवश्यकता:
आम चर्चा है कि सांसद डॉ. महेश शर्मा ने जिला अध्यक्ष पद पर अपने करीबी व्यक्ति को नियुक्त कराया है। नागर का मानना है कि इसमें कोई बुराई नहीं है और राजनीति में यह आम बात है। उन्होंने कहा कि दौड़ में हारने वालों को जीतने वालों को कोसने की बजाय आत्मचिंतन करना चाहिए कि वे पीछे क्यों रह गए।
दबाव की राजनीति और नेतृत्व का अभाव:
नागर ने कहा कि गुर्जर समाज अपनी कमी छुपाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाता रहता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वे दबाव की राजनीति करना नहीं जानते और बिना दबाव के आज की राजनीति में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक बच्चा रोता नहीं, माँ भी उसे दूध नहीं पिलाती। नागर ने यह भी सवाल उठाया कि क्या गुर्जर समाज ने किसी को अपना नेता माना है? उनका मानना है कि जब तक समाज किसी को नेता नहीं मानेगा, तब तक उन्हें यह राजनीतिक त्रासदी झेलनी पड़ेगी।
विरोध की संभावना और छुटपुट पदों की तलाश:
अब यह देखना होगा कि अध्यक्ष पद से वंचित होने का विरोध केवल आम लोगों की चर्चा तक ही सीमित रहेगा या फिर गुर्जर समाज के भाजपाई हाई कमान के सामने अपना विरोध दर्ज करा पाएंगे। नागर को जानकारी मिली है कि गुर्जर समाज के कुछ भाजपाई जिला कार्यकारिणी में छोटे-मोटे पद पाने की कोशिश में जुट गए हैं।
कर्मवीर नागर प्रमुख के विचारों से स्पष्ट होता है कि गौतम बुद्ध नगर में गुर्जर समाज राजनीतिक रूप से हाशिये पर महसूस कर रहा है। पार्टी आधारित वोट बैंक बनने और दबाव की राजनीति न कर पाने के कारण उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों से वंचित रहना पड़ रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि गुर्जर समाज अपनी राजनीतिक स्थिति को सुधारने के लिए भविष्य में क्या कदम उठाता है।