Greater Noida News/ भारतीय टॉक न्यूज़: एक तरफ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के पुश्तैनी किसान अपनी जमीन के बदले आबादी भूखंडों के लिए पिछले 17 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से हुए अरबों रुपये के भूमि घोटाले की जांच रिपोर्ट पिछले 6 सालों से धूल फांक रही है। यह खुलासा यमुना प्राधिकरण (यीडा) के तत्कालीन सीईओ अरुणवीर सिंह की अध्यक्षता में गठित एक जांच समिति की रिपोर्ट से हुआ था, जिसमें बताया गया कि कैसे बाहरी लोगों को अवैध तरीके से महंगी जमीन लीज पर वापस (लीज बैक) कर दी गई।
यह पूरा मामला 2017-19 के बीच सामने आई शिकायतों पर आधारित है। शिकायतों की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश शासन ने यीडा के तत्कालीन सीईओ अरुणवीर सिंह की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट तीन भागों में (10-11-2017, 30-05-2018, और 26-09-2018 को) सौंपी थी, जिसे 5 नवंबर 2018 को अंतिम मंजूरी के लिए शासन को भेजा गया था।
जांच में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
जांच रिपोर्ट ने एक सुनियोजित घोटाले की परतें खोलीं, जिसमें ग्रेटर नोएडा के तत्कालीन अधिकारियों, राजस्व विभाग के कर्मचारियों और बाहरी प्रभावशाली लोगों के बीच एक भ्रष्ट गठजोड़ की ओर इशारा किया गया।
🔸 बाहरी लोगों को फायदा: जांच में पाया गया कि लीजबैक का लाभ पाने वाले अधिकांश लोग गौतम बुद्ध नगर के मूल निवासी नहीं, बल्कि दिल्ली, मुंबई और नागपुर जैसे शहरों के रहने वाले थे। रिपोर्ट में इन लोगों के पते का भी स्पष्ट उल्लेख है।
🔸फर्जीवाड़ा और षड्यंत्र: इन बाहरी लोगों को स्थानीय निवासी दिखाने के लिए राजस्व कर्मचारियों ने साजिश के तहत विक्रय पत्रों के दाखिल-खारिज में हेरफेर किया। इतना ही नहीं, इन लोगों ने गौतम बुद्ध नगर के पते पर फर्जी वोटर आईडी कार्ड तक बनवा लिए थे।
🔸नियमों का घोर उल्लंघन: सबसे गंभीर खुलासा यह था कि बिसरख जलालपुर जैसे गांवों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने (धारा 4/17 की विज्ञप्ति जारी होने) के बाद इन बाहरी लोगों के नाम खतौनी में दर्ज किए गए, जो सीधे तौर पर अवैध था।
🔸बिना आबादी के लीजबैक: कई मामलों में जमीन पर कोई निर्माण या आबादी न होने के बावजूद 2010 में जमीन वापस लीज पर दे दी गई। जबकि शासन का आदेश (दिनांक 24.04.2010) केवल तीन विशेष परिस्थितियों में ही लीजबैक की अनुमति देता है: 1) भूमि पर पुरानी आबादी हो, 2) कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो, या 3) जमीन प्राधिकरण के लिए अनुपयुक्त हो। जांचे गए मामले इनमें से किसी भी शर्त को पूरा नहीं करते थे।
शासन के आदेश हवा में, भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं
जांच रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश शासन ने लगभग साढ़े छह साल पहले ही इस धांधली को एक “पूर्ण नियोजित आपराधिक षड्यंत्र” माना था।
जनवरी 2019 में तत्कालीन प्रमुख सचिव, राजेश कुमार ने एक पत्र (संख्या- 3363/77-3-18-200 एम/18) जारी कर निम्नलिखित आदेश दिए थे:
🔸सभी अनियमित लीजबैक प्रकरणों को तत्काल निरस्त किया जाए।
🔸 उक्त भूमि को वापस प्राधिकरण के कब्जे में लिया जाए।
🔸दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) की सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज की जाए।
शासन ने लीजबैक समिति को भी मानकों का पालन न करने का दोषी पाया था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति के बावजूद, इस पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। आज तक न तो जमीन वापस ली गई और न ही किसी दोषी पर कोई कार्रवाई हुई।
किसानों के साथ अन्याय और भ्रष्टाचार को बढ़ावा
इस मामले ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त दोहरे मापदंड को उजागर कर दिया है। एक ओर जहां मूल किसानों को नियमों का हवाला देकर उनके हक से वंचित किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रभावशाली बाहरी लोग भ्रष्टाचार के दम पर अरबों की संपत्ति पर काबिज हैं। इस inaction ने प्राधिकरण में भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं। अब “न्यू नोएडा” क्षेत्र में भी ऐसे ही बाहरी तत्वों के सक्रिय होने की आशंका है, जो स्थानीय किसानों के हकों पर डाका डाल सकते हैं।
यह आवश्यक है कि सरकार तत्काल इस जांच रिपोर्ट पर संज्ञान ले, शासन द्वारा दिए गए आदेशों का पालन सुनिश्चित करे और दोषियों को सजा दे। साथ ही, इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि आखिर किसके दबाव में इतने बड़े घोटाले की रिपोर्ट को 6 वर्षों तक दबाकर रखा गया।
आवाज उठाने वाले कर्मवीर नागर प्रमुख
इस पूरे घोटाले को प्रमुखता से उजागर करने का श्रेय सामाजिक कार्यकर्ता कर्मवीर नागर प्रमुख को जाता है। वह लंबे समय से ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में किसानों के अधिकारों और प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुखर आवाज रहे हैं।