Greater Noida News /भारतीय टॉक न्यूज़: शारदा विश्वविद्यालय में बीडीएस की छात्रा ज्योति शर्मा की आत्महत्या के मामले में आरोपी दो प्रोफेसरों को जमानत मिल गई है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश मलखान सिंह की अदालत ने मंगलवार को प्रोफेसर डॉ. शैरी वशिष्ठ और डॉ. महेंद्र सिंह की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। दोनों प्रोफेसर 19 जुलाई से न्यायिक हिरासत में जेल में बंद थे। उन पर छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप है।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना नॉलेज पार्क थाना क्षेत्र स्थित शारदा विश्वविद्यालय की है। 18 जुलाई, 2025 को बीडीएस की छात्रा ज्योति शर्मा ने विश्वविद्यालय के मंडेला हॉस्टल में अपने कमरे में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मृतका के पिता रमेश जांगड़ा ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने घटना की सूचना पुलिस या परिवार को दिए बिना ही ज्योति के शव को फंदे से उतारकर अस्पताल पहुंचा दिया, जो साक्ष्यों को छिपाने का प्रयास था।
शिकायत के आधार पर पुलिस ने प्रोफेसर डॉ. शैरी, डॉ. महेंद्र, अनुराग अवस्थी, सुरभी, डीन डॉ. एम सिद्धार्थ और डॉ. आशीष चौधरी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने, मानसिक उत्पीड़न और सबूत मिटाने का मामला दर्ज किया था। पुलिस को जांच के दौरान ज्योति का एक सुसाइड नोट भी मिला था, जिसमें उसने अपनी मौत के लिए सीधे तौर पर डॉ. महेंद्र और डॉ. शैरी को जिम्मेदार ठहराया था।
अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें
अभियोजन पक्ष का विरोध: जमानत का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि मृतका ने अपने सुसाइड नोट में स्पष्ट रूप से दोनों प्रोफेसरों का नाम लिखा है। इसके अलावा, बिना किसी को सूचित किए शव को फंदे से उतारना विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका को संदिग्ध बनाता है। गवाहों ने भी यह पुष्टि की है कि ज्योति अपनी पढ़ाई को लेकर मानसिक तनाव में थी। जांच में यह भी सामने आया कि घटना से कुछ दिन पहले 14 जुलाई को छात्रा के पिता को पेरेंट्स-टीचर मीटिंग के लिए बुलाया गया था, जहाँ उसकी शैक्षणिक स्थिति पर चर्चा हुई थी।
बचाव पक्ष का तर्क: वहीं, आरोपी प्रोफेसरों के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया कि दोनों का चरित्र स्वच्छ है और उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने दलील दी कि मृतका की अकादमिक स्थिति बेहद खराब थी; उसकी उपस्थिति केवल 30 प्रतिशत थी और उसने कई बार उपस्थिति रजिस्टर और प्रैक्टिकल फाइलों पर फर्जी हस्ताक्षर भी किए थे। जब उसके खराब प्रदर्शन को लेकर उसे डांटा गया, तो उसने अवसाद में आकर यह कदम उठा लिया।
इस घटना के बाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने जोरदार प्रदर्शन किया था, जिसके दबाव में आकर प्रबंधन ने आरोपी प्रोफेसरों को निलंबित कर दिया था। अब अदालत से जमानत मिलने के बाद मामला एक नया मोड़ ले सकता है।