Greater Noida News : वर्ष 2011 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन के लिए चर्चित रहा भट्टा पारसौल एक बार फिर सुर्खियों में है। 14 साल बाद, सीबीसीआइडी मेरठ की टीम ने इस मामले में 27 किसानों के घरों पर कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया है। यह कार्रवाई उन किसानों के खिलाफ है जो 2011 में हुए हिंसक प्रदर्शन में शामिल थे।
क्या था भट्टा पारसौल काण्ड?
2011 में, ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल समेत कई गांवों के किसानों ने किसान नेता मनवीर तेवतिया के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण को लेकर यमुना प्राधिकरण के खिलाफ आंदोलन किया था। 7 मई 2011 को यह आंदोलन हिंसक हो गया था, जिसमें दो किसानों और दो पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था, और तत्कालीन कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी किसानों से मिलने पहुंचे थे। हिंसा के बाद, सैकड़ों किसानों पर हत्या, लूट और बलवा जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। हालांकि, बाद में वे जमानत पर रिहा हो गए थे।
किसानों पर कार्रवाई और कुर्की का नोटिस
इस घटना के बाद से ही इन किसानों पर अदालती कार्यवाही चल रही है। सीबीसीआइडी इंस्पेक्टर हरेराम यादव के अनुसार, इन किसानों को कई बार अदालत में पेश होने के लिए कहा गया, लेकिन वे हाजिर नहीं हुए। इसी के चलते अब सीबीसीआइडी ने सख्त कदम उठाते हुए 27 किसानों के घरों पर कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया है। इन किसानों को एक महीने के भीतर अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया है, अन्यथा उनके घरों की कुर्की की जाएगी। यह नोटिस भट्टा, पारसौल, सक्का और आछेपुर गांवों में चस्पा किए गए हैं।
किसानों में हड़कंप और न्याय की गुहार
कुर्की के नोटिस के बाद किसानों में हड़कंप मच गया है। किसानों का कहना है कि उन्होंने सरकार से बार-बार इस मामले को खत्म करने की अपील की है, लेकिन उनकी मांगों को अनसुना कर दिया गया है। वे कानून के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं चाहते और न्याय की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 14 साल बाद फिर से इस मामले को उछालना उनके साथ अन्याय है।
किसान नेता मनवीर तेवतिया का बयान
2011 के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान नेता मनवीर तेवतिया का कहना है कि यह आंदोलन 10 से अधिक गांवों के किसानों द्वारा आबादी निस्तारण के मुद्दे पर 20 दिनों तक चलाया गया था। उन्होंने बताया कि किसान अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश यह हिंसक रूप ले गया।
आगे की कार्रवाई और न्याय की उम्मीद
सीबीसीआइडी ने किसानों को एक महीने का समय दिया है। अब देखना यह है कि क्या ये किसान अदालत में पेश होते हैं और उन्हें न्याय मिलता है या नहीं। यदि वे अदालत में पेश नहीं होते हैं, तो उनके घरों की कुर्की की जाएगी, जिससे उनके परिवारों पर और भी बुरा असर पड़ेगा। यह घटना एक बार फिर भूमि अधिग्रहण और किसानों के अधिकारों के मुद्दे को चर्चा में ले आई है।