Emergency, 49 साल पहले 1975 में लोगों की नसबंदी, इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश ने बदल दी थी पूरी दिशा

Bharatiya Talk
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Emergency, sterilization of people 49 years ago in 1975, an order of Allahabad High Court had changed the entire direction.

( Emergency, sterilization of people 49 years ago in 1975, an order of Allahabad High Court had changed the entire direction. )

परिचय – भारत में आपातकाल: लोकतंत्र पर एक काला अध्याय

Emergency, 49 साल पहले 1975 में लोगों की नसबंदी, इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश ने बदल दी थी पूरी दिशा
Emergency, sterilization of people 49 years ago in 1975, an order of Allahabad High Court had changed the entire direction.

 

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 का दिन एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मोड़ के रूप में दर्ज है। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की, जो 21 महीने तक चला। यह अवधि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक कठिन परीक्षा साबित हुई, जिसमें नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए गए और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इस लेख में हम आपातकाल के कारणों, घटनाओं और इसके प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

आपातकाल की पृष्ठभूमि

1970 के दशक की शुरुआत में भारत कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा था। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी। इसके अलावा, 1973-74 के तेल संकट ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। इन सबके बीच, 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया, जिससे उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई।

आपातकाल की घोषणा

25 जून 1975 को, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर आपातकाल की घोषणा की। इस घोषणा के तहत संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू किया गया। इसके परिणामस्वरूप नागरिक अधिकारों पर कई प्रतिबंध लगाए गए, प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित किया गया और कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।

आपातकाल के दौरान घटनाएँ

आपातकाल के दौरान सरकार ने कई कठोर कदम उठाए। प्रेस सेंसरशिप लागू की गई, जिससे मीडिया स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट नहीं कर सका। विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। इसके अलावा, जबरन नसबंदी कार्यक्रम भी चलाया गया, जिसने जनता में व्यापक असंतोष पैदा किया।

आपातकाल का प्रभाव

आपातकाल का भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस अवधि ने भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिला दिया और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर गंभीर प्रश्न खड़े किए। हालांकि, आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार और जनता पार्टी की जीत ने यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता लोकतंत्र और स्वतंत्रता के प्रति कितनी सजग है।

निष्कर्ष

आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय है, जिसने देश को यह सिखाया कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि किसी भी परिस्थिति में लोकतांत्रिक मूल्यों और स्वतंत्रता की रक्षा करना आवश्यक है। आज, जब हम इस घटना को याद करते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी स्थिति फिर कभी न उत्पन्न हो।

 

पत्रकार रजत शर्मा ने भी इमरजेंसी पर अपना एक्स पर अपना दर्द लिखा

50 साल पहले की वो काली रात मुझे याद है जब इमरजेंसी लगी थी. रातों रात सारे विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया. अख़बारों पर सेन्सरशिप लगा दी गई. अदालतों के हक़ छीन लिये गये. संविधान का अनादर हुआ. लोकतंत्र की हत्या कर दी गई. मैंने सब देखा, ज़ुल्म सहा, जेल में रहा, अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए संघर्ष किया. आजकल जो लोग संविधान और लोकतंत्र की बातें करते हैं, उन्हें एक बार उन दिनों की तरफ़ भी देख लेना चाहिए. किस ने किया, किस के लिये किया, ये भी सोचना चाहिये. #Emergency

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