दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।

History of Dujana Fair and Story of Dadi Satti: For more than 450 years where memories of Dadi Satti are still alive.

Partap Singh Nagar
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दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।

Famous Temple Greater Noida: उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में ग्रेटर नोएडा के बिसरख ब्लॉक के दुजाना गांव में स्थित है, अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहाँ हर साल होली के बाद एक विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसे दुजाना मेला कहा जाता है। यह मेला दादी सत्ती को समर्पित है, जिनकी वीर गाथा आज भी स्थानीय लोगों के दिलों में बसी हुई है। इस मंदिर में माथा टेकन के लिए देश के बड़े- बड़े नेता आ चुके है। यह मेला हर साल होली के अगले दिन, जिसे धुलकंडी के नाम से जाना जाता है, आयोजित होता है और इसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। दादी सत्ती का मंदिर इस मेले का केंद्र है, जो 250 से अधिक वर्षों से आस्था और समर्पण का प्रतीक बना हुआ है। इस लेख में हम दुजाना मेले के इतिहास, दादी सत्ती की कहानी, और इसके महत्व को विस्तार से जानेंगे।

दादी सत्ती की कहानी

 दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।
दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी :

लगभग 450 वर्ष पूर्व, दुजाना गांव के कई पुरुष एक युद्ध में भाग लेने गए थे। उनमें से एक थे भगीरथ सिंह, जो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। जब उनकी पत्नी रामकौर को यह दुखद समाचार मिला, तो उन्होंने सती होने का निश्चय किया।  दादी सत्ती की कहानी वीरता, बलिदान और पतिव्रता धर्म का प्रतीक है। रामकौर, जो बाद में दादी सत्ती के नाम से जानी गईं, ने अपने पति की मृत्यु के बाद सती होकर अपनी अटूट श्रद्धा और प्रेम का परिचय दिया। उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की याद दिलाती है। दादी सत्ती को शक्ति और नारीत्व का प्रतीक माना जाता है, और उनकी पूजा विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय है।

दुजाना मेले का आयोजन और आकर्षण:

 दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।
दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।

दुजाना मेला हर साल दादी सत्ती मंदिर परिसर में आयोजित किया जाता है। मेले का आयोजन मंदिर समिति और स्थानीय ग्रामीणों द्वारा मिलकर किया जाता है। मेले की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है, जिसमें मंदिर को सजाना और मेले के लिए जगह तैयार करना शामिल है। मेले में विभिन्न प्रकार की दुकानें, झूले और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोग दादी सत्ती के मंदिर में जाकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए मंदिर समिति के स्वयंसेवक और पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं।

मेले में आकर्षण

दुजाना मेला विभिन्न प्रकार के आकर्षणों से भरा होता है। मेले में सैकड़ों दुकानें और स्टॉल लगाए जाते हैं, जहाँ लोग खाने-पीने की चीजें, खिलौने, कपड़े, और धार्मिक वस्तुएं खरीदते हैं। मेले में बड़े झूले और ऊंट की सवारी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए विशेष आकर्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त, मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन-कीर्तन भी आयोजित किए जाते हैं, जो मेले को और भी जीवंत बनाते हैं।

मेले में राजनीतिक और सामाजिक योगदान

 दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।
दुजाना मेले का इतिहास और दादी सत्ती की कहानी : 450 से अधिक वर्षों से जहाँ दादी सत्ती की यादें आज भी जीवंत हैं।

दुजाना मेला केवल धार्मिक उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और राजनीतिक महत्व भी है। इतिहास में कई बड़े नेता, जैसे 10 नम्बर 1963 को जवाहरलाल नेहरू दर्शन करने और मत्था टेकने आए थे । चौधरी चरण सिंह और 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी भी  इस मंदिर में मत्था टेकने आए थे। कांग्रेस पार्टी और किसान नेता के नाम से मशहूर से राजेश पायलट भी इस मंत्री में हर साल आते थे। आज भी मेले में स्थानीय सांसद, विधायक और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, सांसद सुरेंद्र नागर, स्वास्थ्य राज्य मंत्री अतुल गर्ग और विधायक तेजपाल नागर जैसे नेताओं ने मेले में भाग लिया था। यह मेला गांव के सामाजिक विकास और एकता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आधुनिक समय में मेले का बदलता स्वरूप

समय के साथ दुजाना मेला भी आधुनिकता की छाया से अछूता नहीं रहा है। जहां पहले यह मेला पूरी तरह से पारंपरिक था, वहीं अब इसमें कुछ आधुनिक तत्व भी शामिल हो गए हैं, जैसे कि डिजिटल भुगतान और सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी का प्रसार। फिर भी, मेले का मूल स्वरूप और दादी सत्ती के प्रति लोगों की आस्था आज भी वैसी ही बनी हुई है। यह मेला आधुनिकता और परंपरा के बीच एक संतुलन बनाए रखने का बेहतरीन उदाहरण है।

एक जीवंत परंपरा का प्रतीक

दुजाना मेला और दादी सत्ती की कहानी न केवल एक धार्मिक आयोजन की गाथा है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण जीवन की जीवंतता और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। यह मेला हर साल लोगों को एकजुट करता है और दादी सत्ती के प्रति उनकी श्रद्धा को मजबूत करता है। यदि आप कभी ग्रेटर नोएडा के आसपास हों, तो इस मेले में शामिल होकर इस अनूठी परंपरा का हिस्सा जरूर बनें। यह एक ऐसा अनुभव है जो आपको इतिहास, संस्कृति और आस्था की गहराई तक ले जाएगा।

 

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