नई दिल्ली/जयपुर / भारतीय टॉक न्यूज़ : राजस्थान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण (विकास) के तहत, नदबई विधानसभा सीट से पूर्व विधायक जोगेंद्र सिंह अवाना को राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत सिंह ने बुधवार को नई दिल्ली में उनके नाम की आधिकारिक घोषणा की। अप्रैल महीने में ही रालोद की सदस्यता ग्रहण करने वाले अवाना को अब राज्य में पार्टी के संगठन को मजबूत करने और जनाधार बढ़ाने की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है।
जोगेंद्र सिंह अवाना का राजनीतिक सफर
जोगेंद्र सिंह अवाना का राजनीतिक करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वे मुख्य रूप से राजस्थान के भरतपुर जिले की नदबई विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं।
🔸 2018 का विधानसभा चुनाव: अवाना ने 2018 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर नदबई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने इस चुनाव में राजपरिवार की सदस्य और तीन बार की विधायक कृष्णेंद्र कौर दीपा को पराजित किया था।
🔸 कांग्रेस में विलय: 2019 में, राजस्थान में बसपा के छह विधायकों ने सामूहिक रूप से कांग्रेस पार्टी में विलय कर लिया था, जिनमें जोगेंद्र सिंह अवाना भी शामिल थे।
🔸देवनारायण बोर्ड के अध्यक्ष: अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में अवाना को देवनारायण बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जो गुर्जर समुदाय के कल्याण के लिए काम करता है।
🔸 2023 का विधानसभा चुनाव: 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में जोगेंद्र सिंह अवाना ने कांग्रेस के टिकट पर नदबई से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जगत सिंह से हार का सामना करना पड़ा।
🔸 रालोद में प्रवेश: अप्रैल 2025 में, अवाना ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की सदस्यता ग्रहण की। रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने उन्हें पार्टी की शपथ दिलाई थी।
पृष्ठभूमि और प्रभाव
जोगेंद्र सिंह अवाना गुर्जर समुदाय से आते हैं और नदबई, जो कि एक गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है, में उनका अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के नोएडा स्थित झुंडपुरा गांव के रहने वाले हैं।
रालोद में नई भूमिका और भविष्य की राह
राजस्थान रालोद के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जोगेंद्र सिंह अवाना के कंधों पर अब राज्य में पार्टी संगठन को नए सिरे से खड़ा करने और जमीनी स्तर पर मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी होगी। उनकी नियुक्ति को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान के गुर्जर बहुल इलाकों में रालोद के प्रभाव को बढ़ाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अवाना के नेतृत्व में रालोद राजस्थान में अपनी राजनीतिक जमीन कितनी मजबूत कर पाती है।