Advocate Strike, Uttar pradesh/ भारतीय टॉक न्यूज़: उत्तर प्रदेश में आज, 24 फरवरी 2025 को वकीलों ने बड़े पैमाने पर हड़ताल शुरू की है। यह हड़ताल केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एडवोकेट्स (अमेंडमेंट) बिल, 2025 के खिलाफ है, जिसे लेकर वकील समुदाय में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। लखनऊ से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और गौतमबुद्धनगर के सूरजपुर कोर्ट तक, अधिवक्ताओं ने कामकाज ठप कर दिया है और अपने विरोध को मुखर रूप से प्रदर्शित किया है। खास तौर पर सूरजपुर कोर्ट में वकीलों ने बिल के प्रावधानों के खिलाफ नारेबाजी की और कोर्ट परिसर में प्रदर्शन किया। इस लेख में हम इस हड़ताल के कारणों, प्रभावों और इससे जुड़ी पूरी जानकारी को विस्तार से देखेंगे।
हड़ताल का कारण: नए बिल के प्रावधानों पर आपत्ति
वकीलों की हड़ताल का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एडवोकेट्स (अमेंडमेंट) बिल, 2025 में शामिल कुछ विवादास्पद प्रावधान हैं। इस बिल में सेक्शन 35A सबसे ज्यादा चर्चा में है, जो वकीलों और उनके संगठनों को कोर्ट के कामकाज से बहिष्कार या हड़ताल करने से रोकता है। इस प्रावधान के तहत ऐसा करना पेशेवर कदाचार माना जाएगा और इसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। वकील समुदाय का मानना है कि यह नियम उनकी स्वायत्तता और विरोध करने के अधिकार को सीमित करता है। इसके अलावा, बिल में राज्य बार काउंसिल को तीन साल या उससे अधिक की सजा पाए व्यक्तियों को नामांकन से रोकने और बार काउंसिल ऑफ इंडिया में केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्यों को शामिल करने जैसे प्रावधान भी विवाद का कारण बने हैं।
विरोध का स्वरूप: लखनऊ से इलाहाबाद तक प्रदर्शन
इस हड़ताल का असर पूरे उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है। लखनऊ में अवध बार एसोसिएशन (हाईकोर्ट लखनऊ बेंच) और लखनऊ बार एसोसिएशन (जिला अदालत) ने संयुक्त रूप से हड़ताल का ऐलान किया है। वकीलों ने कोर्ट परिसरों में नारेबाजी की और प्रदर्शन मार्च निकाले। इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी अधिवक्ताओं ने काम से दूरी बनाई, जिससे न्यायिक कार्य पूरी तरह प्रभावित हुआ। गौतमबुद्धनगर के सूरजपुर कोर्ट में भी वकीलों ने हड़ताल को पूर्ण समर्थन देते हुए कोर्ट के बाहर धरना दिया। यूपी बार काउंसिल ने इस हड़ताल को पूरे राज्य में लागू करने का आह्वान किया था, जिसे सेंट्रल बार एसोसिएशन, लखनऊ सहित कई संगठनों ने समर्थन दिया। वकीलों का कहना है कि यह बिल उनकी आजादी पर हमला है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।
हड़ताल का प्रभाव: कोर्ट में कामकाज ठप
हड़ताल के चलते उत्तर प्रदेश की अदालतों में आज कोई कामकाज नहीं हुआ। जिला अदालतों से लेकर हाईकोर्ट तक, सुनवाई स्थगित कर दी गई, जिससे मुकदमों के निपटारे में देरी हुई। यह स्थिति उन पक्षकारों के लिए परेशानी का सबब बन गई, जो महीनों से सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे थे। हालांकि, वकीलों का कहना है कि यह कदम मजबूरी में उठाया गया है, क्योंकि नए बिल के प्रावधान उनके पेशे की गरिमा और स्वतंत्रता को खतरे में डालते हैं। लखनऊ और सूरजपुर में प्रदर्शन के दौरान भारी पुलिस बल तैनात किया गया, लेकिन स्थिति नियंत्रण में रही।
वकीलों की मांग: बिल में संशोधन या वापसी
वकील समुदाय ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इस बिल को मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं करेंगे। उनकी मांग है कि केंद्र सरकार या तो विवादास्पद प्रावधानों को हटाए या फिर बिल को पूरी तरह वापस ले। यूपी बार काउंसिल ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो विरोध को और तेज किया जाएगा। कुछ वकील नेताओं ने इसे “ड्रैकोनियन” (कठोर) कानून बताते हुए कहा कि यह न केवल वकीलों के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को भी प्रभावित करेगा।
सरकार और बार काउंसिल की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार ने अभी तक इस हड़ताल पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। हालांकि, बिल को लेकर 28 फरवरी तक सुझाव मांगे गए थे, जिसे वकीलों ने अपर्याप्त समय बताकर खारिज कर दिया। दूसरी ओर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी बिल के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी और कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर संशोधन की मांग की थी। बीसीआई ने वकीलों से शांति बनाए रखने और कोर्ट का काम शुरू करने की अपील की है, लेकिन मौजूदा माहौल में यह अपील प्रभावी नहीं दिख रही।
आगे की राह: क्या होगा अगला कदम?
हड़ताल के पहले दिन का असर साफ है, लेकिन यह देखना बाकी है कि यह आंदोलन कितने दिन चलेगा और इसका क्या परिणाम होगा। वकील समुदाय एकजुट दिख रहा है, और अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो यह विरोध पूरे देश में फैल सकता है। दूसरी ओर, सरकार के लिए यह चुनौती होगी कि वह वकीलों के गुस्से को शांत करे और न्यायिक सुधारों के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाए। आने वाले दिन इस मामले में निर्णायक साबित होंगे।