एनजीटी का नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों को कड़ा निर्देश: अवैध निर्माणों का पूरा विवरण प्रस्तुत करें

NGT's strict instructions to Noida-Greater Noida authorities: Submit full details of illegal constructions

Bharatiya Talk
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एनजीटी का नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों को कड़ा निर्देश: अवैध निर्माणों का पूरा विवरण प्रस्तुत करें

 

Greater Noida News/भारतीय टॉक न्यूज़: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अवैध और अनधिकृत निर्माणों पर सख्त रुख अख्तियार किया है। एनजीटी ने दोनों प्राधिकरणों को ऐसे निर्माणों में शामिल व्यक्तियों, परियोजनाओं, संपत्तियों और स्थानों का पूरा विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह कदम व्यापक पैमाने पर हो रही अवैध कॉलोनियों, विला, दुकानों और अन्य आवासीय/व्यावसायिक निर्माणों पर अंकुश लगाने के लिए उठाया गया है।

मामले की पृष्ठभूमि और एनजीटी की नाराज़गी

यह निर्देश भाजपा नेता और पूर्व नगर निगम पार्षद राजेंद्र त्यागी द्वारा दायर एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट के बाद आया है। इस रिपोर्ट में न्यायालय के पिछले दो आदेशों के घोर उल्लंघन में किए जा रहे अवैध निर्माणों का विस्तृत विवरण दिया गया था।

एनजीटी ने नोएडा प्राधिकरण द्वारा दायर हलफनामे पर गहरी नाराज़गी व्यक्त की, जिसमें अवैध निर्माणों की स्पष्ट तस्वीर पेश नहीं की गई थी। अधिकरण ने जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे निर्माणों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और भूजल प्रबंधन परिषद को निर्देश

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी उन क्षेत्रों का व्यापक निरीक्षण करने और कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया है जहाँ ऐसे निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अदालत ने जिला भूजल प्रबंधन परिषद को अपना हलफनामा अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

अधिवक्ता का आरोप: बिल्डरों के साथ मिलीभगत

आवेदक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता श्री आकाश वशिष्ठ ने अदालत को बताया कि ग्रेटर नोएडा और अन्य संबंधित प्राधिकरणों के बीच कॉलोनाइजरों और निजी बिल्डरों के साथ सक्रिय मिलीभगत और गहरी सांठगांठ चल रही है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों द्वारा कार्रवाई न किए जाने से अवैध कॉलोनाइजरों का हौसला बढ़ रहा है। श्री वशिष्ठ ने बताया कि कुछ अवैध निर्माण तहसील कार्यालय से बमुश्किल 5 किलोमीटर की दूरी पर हैं, जहाँ अवैध रूप से बिक्री पत्र निष्पादित किए जा रहे हैं।

श्री वशिष्ठ ने तर्क दिया, “मामले का दायरा इतना बड़ा है कि लगभग हर गाँव इन अवैध निर्माणों से ग्रस्त हो गया है। राजस्व अधिकारियों की अनुमति के बिना कृषि भूमि को अवैध रूप से अन्य उपयोगों में बदल दिया गया। गाँव झुग्गी-झोपड़ियों में बदल गए हैं। सीवरेज का कोई बुनियादी ढाँचा नहीं है।” उन्होंने इस सबकी उच्चस्तरीय समिति द्वारा जाँच की आवश्यकता पर बल दिया।

पूर्व के आदेश और व्यापक अवैध निर्माणों का दावा

शीर्ष पर्यावरण न्यायालय ने 09 दिसंबर, 2024 को ही ग्रेटर नोएडा और नोएडा में चल रहे सभी अवैध और अनधिकृत निर्माणों और परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी, जो स्थापना सहमति, संचालन सहमति, पर्यावरण संरक्षण और अन्य पर्यावरणीय मानदंडों के बिना किए जा रहे थे।

इससे पहले, 02 अप्रैल, 2024 को एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार, नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कई अन्य केंद्रीय/राज्य सार्वजनिक प्राधिकरणों, और बिल्डरों (सैमटेल एन्क्लेव, द्वारका सिटी, सहारा सिटी) को ग्रेटर नोएडा और नोएडा में विला, टाउनशिप, कॉलोनियों, दुकानों, घरों आदि के व्यापक और बड़े पैमाने पर अवैध और अनधिकृत निर्माण के लिए नोटिस जारी किए थे।

याचिका में ग्रेटर नोएडा के 56 गाँवों और नोएडा के 18 गाँवों के अलावा कई अन्य गाँवों का नाम लिया गया है, जहाँ वायु अधिनियम और जल अधिनियम के प्रावधानों का पूर्ण उल्लंघन करते हुए अवैध/अनधिकृत कॉलोनियाँ और टाउनशिप बनाई जा रही हैं।

नियमों का उल्लंघन और भूमि का अवैध उपयोग

याचिका में यह भी कहा गया है कि किसी भी बिल्डर के पास जिला भूजल प्रबंधन परिषद से कोई एनओसी नहीं है, न ही उनके बोरवेल पंजीकृत हैं। इसके अलावा, किसी ने भी जीएनआईडीए से अपना ले-आउट प्लान स्वीकृत नहीं कराया है, भूमि-उपयोग परिवर्तन नहीं कराया है और कोई भी जीएनआईडीए मास्टर प्लान के तहत क्षेत्र के भूमि-उपयोग के अनुरूप नहीं है।

याचिका में दावा किया गया है कि किसी भी व्यक्ति या बिल्डर ने एसडीएम से यह आवश्यक, कानूनी रूप से आवश्यक घोषणा प्राप्त नहीं की है कि कृषि भूमि का उपयोग आवासीय, वाणिज्यिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है या प्रस्तावित है।

यह भी कहा गया है कि ग्रेटर नोएडा में 20,000 हेक्टेयर से अधिक उपजाऊ कृषि योग्य भूमि हड़प ली गई है, जबकि नोएडा में 20,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग अवैध प्लॉटिंग के लिए किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के इन दो जुड़वां शहरों और एनसीआर के एक प्रमुख गंतव्य में यह मुद्दा चिंताजनक रूप ले चुका है।

 

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