निठारी कांड: 19 कंकाल, 18 साल की लड़ाई और नतीजा ‘सबूत नहीं’! तो फिर बच्चों का कातिल कौन? CBI फेल, सबूत फेल, सिस्टम फेल!

Nithari case: 19 skeletons, 18 years of struggle and the result is 'no evidence'! Then who is the killer of the children? CBI failed, evidence failed, system failed!

Bharatiya Talk
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निठारी कांड: 19 कंकाल, 18 साल की लड़ाई और नतीजा 'सबूत नहीं'! तो फिर बच्चों का कातिल कौन? CBI फेल, सबूत फेल, सिस्टम फेल!

New delhi / भारतीय टॉक न्यूज़: देश को हिलाकर रख देने वाले नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड में न्याय की उम्मीदें बुधवार को उस समय ध्वस्त हो गईं, जब सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर की रिहाई को बरकरार रखा। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), उत्तर प्रदेश सरकार और पीड़ित परिवारों द्वारा दायर की गई सभी अपीलों को खारिज कर दिया। यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 अक्टूबर 2023 के निर्णय पर अंतिम मुहर है, जिसने सबूतों के अभाव में दोनों को बरी कर दिया था। इस निर्णय ने उन पीड़ित परिवारों के 18 साल के लंबे और दर्दनाक संघर्ष पर विराम लगा दिया है, जो अपने बच्चों के लिए न्याय की आस में जी रहे थे।

क्या था निठारी कांड?

साल 2005-2006 में नोएडा के सेक्टर 31 स्थित मोनिंदर सिंह पंढेर के घर (डी-5) के पास के नाले से जब बच्चों और युवतियों के कंकाल मिलने शुरू हुए, तो पूरा देश दहल गया था। यह मामला हत्या, अपहरण, बलात्कार और कथित नरभक्षण जैसे जघन्य अपराधों का प्रतीक बन गया। CBI ने कुल 19 मामले दर्ज किए, जिनमें पंढेर के घरेलू नौकर सुरेंद्र कोली को 16 मामलों में और पंढेर को 6 मामलों में आरोपी बनाया गया। निचली अदालत (गाजियाबाद CBI कोर्ट) ने कोली को 14 मामलों में और पंढेर को 3 मामलों में मौत की सज़ा सुनाई थी।

अदालती लड़ाई का लंबा सफर और निर्णायक मोड़

यह मामला निचली अदालत से होते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, जहाँ 16 अक्टूबर 2023 को इसने एक नाटकीय मोड़ लिया। हाई कोर्ट ने CBI की जांच को “अधूरी, दोषपूर्ण और बुरी तरह से गड़बड़” करार देते हुए सबूतों की कमी के आधार पर कोली को 12 मामलों में और पंढेर को 2 मामलों में बरी कर दिया। हाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी ने जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए।

इसी फैसले के खिलाफ CBI, यूपी सरकार और पीड़ित परिवार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोली को “सीरियल किलर” बताते हुए दलील दी कि उसका कबूलनामा और मेडिकल साक्ष्य उसे दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के तर्कों को सही माना और कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध को संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।

जांच पर उठे गंभीर सवाल

इस पूरे मामले में CBI की जांच शुरू से ही सवालों के घेरे में रही। कोली के वकील ने दलील दी कि उसका कबूलनामा पुलिस हिरासत में यातना देकर लिया गया था। सबसे बड़ा सवाल जांच की दिशा को लेकर था। बरामद हुए शरीर के अवशेषों को जिस सर्जिकल सटीकता से काटा गया था, वह नरभक्षण के बजाय एक संगठित अंग व्यापार रैकेट की ओर इशारा कर रहा था। विशेषज्ञों का मानना है कि CBI ने इस एंगल को नजरअंदाज कर पूरे मामले को यौन उत्पीड़न और नरभक्षण की कहानी बना दिया, जिसे वह अदालत में साबित नहीं कर सकी।

पीड़ितों का दर्द और सिस्टम से निराशा

सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले ने पीड़ित परिवारों को गहरे सदमे और निराशा में डुबो दिया है। अपनी बेटी पायल को इस कांड में खोने वाले पप्पू लाल ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “हमने इंसाफ के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन सिस्टम ने हमें अकेला छोड़ दिया।” इन परिवारों ने न केवल अपने प्रियजनों को खोया, बल्कि न्याय की इस लंबी लड़ाई में अपनी जमा-पूंजी और जीवन के 18 अनमोल वर्ष भी गंवा दिए।

अब आगे क्या?

मोनिंदर सिंह पंढेर सभी मामलों से बरी होकर 20 अक्टूबर 2023 को ही जेल से रिहा हो चुके हैं। सुरेंद्र कोली को भी 12 मामलों में बरी कर दिया गया है, हालांकि एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले सुनाई गई मौत की सजा अभी भी उस पर लागू है।

निठारी कांड भारतीय न्याय प्रणाली के इतिहास में एक ऐसे अध्याय के रूप में याद किया जाएगा, जहां अपराध की भयावहता तो सामने आई, लेकिन उसकी सच्चाई और गुनहगारों पर अंतिम निर्णय एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गया। यह फैसला जांच एजेंसियों की जवाबदेही और न्याय प्रदान करने में सिस्टम की सीमाओं पर एक गंभीर विमर्श की मांग करता है।

 

 

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