भारतीय शिक्षा मंत्रालय/भारतीय शिक्षा प्रणाली अगर इसको ऐसे परिभाषित किया जाए कि “इसके अंतर्गत केवल छात्रों के भविष्य के साथ, उनके जज्बातों के साथ खिलवाड़ किया जाता है” तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि जिस तरीके का घटनाक्रम पिछले कुछ वर्षों में रहा ,वह इस परिभाषा को सही साबित करने के लिए काफी है। अगर हम पिछले कुछ सालों कि बात करे तो हमारी शिक्षा प्रणाली/तंत्र के दामन में ऐसे ला तादाद दाग़ है जो हमारे एजुकेशन सिस्टम कि पोल खोलने के लिए काफी है। अगर मोटा मोटी बात करे तो राजस्थान में रीट का पेपर लीक हुआ।
उत्तर प्रदेश की बात करे तो वहाँ पर तो एक लम्बी फेहरिस्त है जो उत्तर प्रदेश सरकार कि मुस्तैदी पर सवालिया निशान खडा करती है
अगर इसी साल कि बात करे तो आरओ एआरओ का एग्जाम लीक हुआ, उसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस का एग्जाम लीक हुआ।
उसके बाद नीट के एग्जाम/परिणामों में हुई धांधली जिससे करोड़ों मेधावी छात्र प्रभावित हुए । उसके बाद अब हाल ही में हुई यूजीसी नेट कि परीक्षा को रद्द कर दिया गया है। ये उदहारण काफी है हमारी परीक्षा प्रणाली की नाकामीयों को समझने के लिए।
उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल :-
ये एग्जाम वो एग्जाम है जिनसे प्रदेश की 90% जनता का जुडाव होता है, लगभग 5 साल बाद आई इस भर्ती में करीब करीब 52 लाख फार्म भरे गए थे। और ये तमाम फोर्म उन घरों परिवारों से भरे गए थे जिनकी सरकार से बस दो ही मांग मुख्यतः होती है ” पहली फसल का वाजिब दाम, और दुसरी उनके बच्चों को उचित रोजगार ” यानि किसान परिवारों से और भारत कि आधी से अधिक आबादी इन्हीं परिवारों से आती है और यही वो लोग है जो देश के मुस्तकबिल को चुनने में निर्णायकं भुमिका निभाते हैं। खैर इन 52 लाख फोर्म कि संख्या से आप उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की भयावह स्थिति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। और ऐसे में इतनी बड़ी भर्ती का आना, छात्रों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था।
लेकिन इतने सब के बाद पेपर लीक हो जाना, कितना पीडा दायक होता होगा उस छात्र के लिए, जिसकी रात दिन कि मेहनत थी, जिसने एग्जाम सेंटर तक पहुँचने के लिए रेलगाड़ियों, बसो मे धक्के खाएँ थे। लेकिन क्या करे भर्ती बोर्ड की एक गलती ने उसके सारे सपने एक झटके में तोड़ दिए।
नीट का एग्जाम जिसमें हुई धांधली का हाल ही में पर्दाफाश हुआ है।
नीट के एग्जाम कि तैयारी करने वाला छात्र यही कोई 16 18 कि उम्र का होता है जो मानसिक तौर पर इतना ज्यादा परिपक्व नहीं होता, वह घर वालो के प्रेशर को फेस करता है , समाज के प्रेशर को फैस करता है ,अपनी रातदिन कि मेहनत से एक बडी भीड़ को काट कर , घर से बहुत दुर सेंटर पर एग्जाम देने के लिए पहुचता है तब एग्जाम में बैठता है। और उसके बाद उसको क्या मिलता है? महज निराशा और खुद कि वजह से नहीं बल्कि उस सरकारी तंत्र कि वजह से । उसी सरकारी तंत्र कि वजह से जिसमें छात्र कि गलती कि कोई जगह नहीं है, और खुद कि गलती कि कोई सजा नहीं ।
वही सरकारी तंत्र जिसमें छात्र अगर एक मिनट कि देरी से सेंटर में पहुंचे तो उसके लिए सेंटर के दरवाजे खोलने का कोई प्रावधान नहीं है, और ना खुद कि नाकामी से होने वाले छात्रों के कई साल कि मेहनत के बरबाद होने के लिए कोई जवाबदेही और कार्यवाही।
ये वही सरकारी तंत्र है जिसको, अपने लिए रोजगार मांगते हुए छात्र उपद्रवि दिखाई देते हैं, लेकिन वो संघर्ष दिखाई नहीं देता जो छात्र एक छोटे से कमरे में रहकर कई सालों से करता है। वही तंत्र जिसको छात्र बसें, जलाता दिख जाता है, मगर उस छात्र का उन बसो, रेलो के लिए कई घंटो का इंतजार, और उनमें की गई घंटो कि एक पैर पर खड़े होकर यात्रा दिखाई नहीं देती ।
इन उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में रोजगार के कई चरण होतें है जो निम्नलिखित हैं।
1 रोजगार कि मांग
2 पेपर कि तैयारी
3 सेंटर तक पहुचना
4 पेपर लीक के खिलाफ धरना प्रदर्शन
5 भर्ती पर लिए गए स्टे को हटवाना
6 एक लम्बा कोर्ट केस लडना
उसके बाद अगर केस जीत गए तो 10 12 साल कि ड्यूटी।
सवाल ;- क्या छात्रों के साथ यह खिलवाड़ होता रहेगा?
कब तक होता रहेगा?
कार्यवाही कब तक??